देहगाम की वाड़ी सुंदर है और मन कुछ कह रहा है देख देख सुंदर सपने मौसम जैसे ठहर गया है
मैं तो मैं ही हूं सच कहना कैसा हूं अब तक बच्चा हूं जैसा हूं वैसा हूं
क्या तुमको हम भूल सकेंगे वादे तेरे - मेरे क्या भूल सकेंगे नही भूल हम, तुम्हें सकेंगे वैसे तो कितना कुछ हम भूल गए
हमने खुद, सामने अपना सर कर दिया, आपने, जब भी खंजर निकाला कभी. हम दिलों में बसे, कामियाबी से जो, तुमने, क्या इस दिल को सम्भाला कभी.
समय मेरा, हमेशा साथ ही रहता, तभी तो, मैं यहां आजाद ही रहता. दगाबाजी, नहीं ज्यादा की थी, नहीं तो वो सदा बर्बाद ही रहता.
कोई आया है, ये समझा है मैंने, तभी तो, ये परिवेश बदला है मैंने. मर रहा था, जो निगल के मैं सदा, वो ज़हर, आज नहीं निगला है मैंने.
मैं, मैं हूँ, तू है कौन यहाँ ? पहचान, तेरा है कौन यहाँ? मैं, हमेशां ही रहा मौन यहाँ, मिलते, तो बोलता कौन यहाँ ?
मेरा उधार चुकाने को तू है उधार बढ़ाने को रख ले मेरे तजुर्बे को औरो को सुनाने को
या तो मुझसे प्यार करो या इस दु नया से डरके रहो खुद पर ही विश्वास करो या फिर मर मर के जिया करो
नशा, आज कुछ ऐसा पिला मुझे, ज़िंदगी भर होश, न आए मुझे. कोई भी, समझ न पाया मुझे, क्या क्या समझकर, सताया मुझे.
यार परदे से बाहर तो आ जाओ जो कोई भी हो ज़रा खुल के बताओ देख़ु तो मैं तुम कैसे हो ख़ुद को ज़रा पास लेकर तो आओ
क्यों मैं आपके अनुसार रहूं मैं तो जैसा हूं वैसा ही रहूं अब मेरे अनुसार ही रहूं जब तक हुं खुद्दार रहूं